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Tuesday, February 27, 2024

खनकदार आवाज़ का यू जाना खल गया




 वीरेन्द्र वर्मा

इंदौर। अच्छे से याद है मुझे 80 - 90 के दशक में मोटी आवाज की मल्लिका उषा उत्थप  के एक पॉप गीत " काली तेरी गूथ दे परांदा तेरा लालिनी " के तहलका मचा दिया था। उषा के इस एक पॉप गाने की उस जमाने में काली कैसेट की 35 लाख बिक्री पूरे देश में हुई थी। 

  इसी बीच स्थापित गजल गायक जगजीत सिंह और गुलाम अली का खूब चर्चा होने लगा था। तब ही गजल गायकी में एक नए सितारे पंकज उदास का उदय हुआ। अपने बड़े भाई के नक्शे कदम पर चलकर पंकज ने पार्श्व गायन की जगह गजल गायकी की रह चुनी। वैसे पंकज का पहला एलबम आहट 1980 के दशक में आया। पंकज उदास का नाम  संगीत और गजल के शौकीन लोगों की ज़बा पर आफरीन एलबम के रिलीज होने के बाद चढ़ा। इस एलबम की गजल " जिस दिन से जुदा वो हमसे हुए, इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया " को अपनी मीठी खनकदार आवाज़ ने संगीत रसिको के दिल दिमाग जगह बना ली। उनके उक्त एलबम को खूब सुना और सराहा गया। यही एलबम आफरीन से पंकज को खूब शोहरत और प्रसिद्धि मिली। नतीजा यह रहा कि गजल के शौकीन उनके नए एलबम का इंतजार करने लगे। 

 यह बात जरूर है कि जगजीत सिंह की तरह पंकज उदास को बशीर बद्र, निदा फ़ाज़ली, वसीम बरेलवी जैसे शायर नहीं मिले। मगर , इसके बावजूद प्यार, दर्द और शराब के संयोजन को अपनी मधुर आवाज के जादू से लोगों के दिलों में अलग जगह बनाई। 

 अगर गायकी में मशहूर नाम लता मंगेशकर, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर, मोहम्मद रफी, मुकेश माथुर, मन्ना डे, तलत महमूद, किशोर कुमार को जाना जाता है। उसी तरह गजल गायकी में जगजीत सिंह, गुलाम अली, तलत मेहमूद के साथ पंकज उदास का नाम भी सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है। 

 भले ही जगजीत सिंह और गुलाम अली के जैसे शास्त्रीय संगीत का उपयोग पंकज अपनी गायकी में नहीं करते थे , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पंकज को शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं थी। वे मौसिकी के बड़े फनकार थे। 

   उनकी गाई कुछ गजलों के अंतरे " शराब चीज ऐसी है कि छोड़ी न जाए , " निकलो न बेनकाब, " हुई मंहगी बहुत शराब थोड़ी थोड़ी पिया करो, " ला पीला दे साकिया," चांदी जैसा रंग है तेरा ,  के साथ नाम फिल्म का दर्द भरा प्रसिद्ध गाना चिट्ठी आई है, वतन की मिट्टी लाई है बहुत मशहूर है। 

 गजल और संगीत का एक आला दर्जे के की खनकदार आवाज़ का जाना भारतीय संगीत की अपूरणीय क्षति है। जिस तरह जगजीत सिंह के  जाने बाद गजल गायकी का वो सुरूर कोई पैदा नहीं कर सका, उसी तरह पंकज जो उदास कर गए, वो गजल संगीत की कमी और मस्ती कोई नहीं कर सकेगा।

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